देवशयनी एकादशी
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। यह तिथि पद्मनाभा भी कहलाती है । प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। इस तरह आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का समय चातुर्मास काल कहलाता है। 11 जुलाई 2011 के दिन देवशयनी एकद्शी रहेगी.
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यदि व्रती चातुर्मास का पालन विधिपूर्वक करे तो महाफल प्राप्त होता है। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह,दीक्षाग्रहण, यज्ञ, ग्रहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं। पुराणों का ऐसा भी मत है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यंत (चातुर्मास) पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं।
चातुर्मास की यह विशेषता है कि सभी धर्म के सभी मत इसे साधनाकाल मानते हैं। साधनाकाल होने से ब्रह्मïचर्य व्रत का पालन व पलंग पर शयन निषेध कहा गया है। स्वास्थ्य के लिए यह सावधानी आवश्यक है। चातुर्मास के चार माह - श्रावण, भाद्रपद, आश्विन तथा कार्तिक में क्रमश: शाक, दूध और दही का सेवन निषेध होता है । आयुर्वेद के अनुसार चातुर्मास में पत्तेदार शाक-सब्जियों का भी उपयोग स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है । देवशयनी एकाद्शी व्रत को करने से भगवान श्री विष्णु प्रसन्न होते है. अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले व्यक्तियों को इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए.
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