Thursday, 5 April 2012


पंचक नक्षत्र



पंचक नक्षत्र
निष्ठा पंचकं त्याज्यम्, तृण काष्ठादि संग्रहे।
त्याज्या दक्षिण दिग्यात्रा, गृहच्छादन मेव च।
धनिष्ठाशतभिषापूर्वाभाद्रपदउत्तरा भाद्रपद और रेवती इन नक्षत्रों को पंचकसंज्ञक नक्षत्र कहागया है। यह स्थिति हर सत्ताईस दिन में पुन: बनती है। iapd ls vfHkizk; ikWap ds lewg ls gksrk gS izR;sd eghus esa ;g ikWap fnu dk le; gksrk gS tcfd pUnzek dqEHk ls ehu jkf’k esa xkspj djrk gS इस अवधि में पांच नक्षत्रों का भी योग बनता है। पंचक धनिष्ठा नक्षत्र के चार में से दो चरण छोड़कर यानि आधा धनिष्ठा नक्षत्र से आरंभ होता है। हिन्दु पंचांग के अनुसार चन्द्रमा का गोचर जब कुम्भ राशि से मीन राशि तक होता है तब पंचक शुरु हो जाते हैं अर्थात चन्द्रमा का गोचर धनिष्ठा के उत्तरार्धशतभिषापूर्वा भाद्रपदउत्तरा भाद्रपदरेवती नक्षत्रों में होता है तब पंचक आरम्भ हो जाते हैं. बहुत से विद्वान धनिष्ठा नक्षत्र का पूरा भाग पंचक में मानते हैं. कुछ आधा भाग मानते हैं.
,slk dgk tkrk gS fd iapd ds le; dksbZ dk;Z djus ij mldh ikWap ckj iqujko`fRr dh lEHkkouk gksrh gS  मान्यता है कि चंद्रमा पंचककाल में जब कुम्भ से लेकर मीन राशि तक जाता हैइस दौरान जब वह पंचक नक्षत्रों से होकर गुजरता हैतो इस अवधि में किए जाने वाले शुभ या अशुभ कार्यों का फल भी पांच गुना देता है। यही कारण है कि विवाह आदि शुभ और मंगल कार्य होने पर या मृत्यु होने पर यह मान लिया जाता है कि अब पांच शुभ कार्य या अशुभ घटनाएं ओर होगी। विवाह आदि शुभ कार्य पंचक में त्याज्य होते हैं. xjw.k iqjk.k ds vuqlkj ftl O;fDr dh eqR;q iapd dky ds nkSjku gksrh gS rks mlds ifjokj ds fy, vPNk ugha gksrk 
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ;fn ge bu ikWap iapd u{krzksa ds nkSjku dksbZ dk;Z djrs gSa rks vkidks og ikWap ckj nksgjkuk iMrk gS iapd ds nkSjku czgezk.M esa mifLFkr rRo vlarqfyr gks tkrs gSa stks fd ifjokj dh lajpuk esa Hkh vlarqyu mRiUu djrs gSa iapd ds nkSjku ikWap dk;ksaZ dks izfrcfU/kr fd;k x;k gS  इस समय में तृण और काष्ठ का संग्रह  करे , दक्षिण दिशा मे यात्रा  करेंतथा घर की छत नही बनानी चाहिए । दाह संस्कार में भी लकड़ीतृण के कार्य शामिल होता है। इसलिए मृत्यु होने पर पंचक दोष देखा जाता है। शय्याचूल्हाचौकीभट्टी बनाने का कार्य भी पंचक में शुभ नहीं माना जाता। vk/;kfRed xzaFkksa ds vuqlkj, qHk dk;Z tSls knh, eqMu, xzg izos’k, u;h nqYgu dk Lokxr, u;k edku cukuk vkSj miu;u laLdkj Hkh bl nkSjku ugha djus pkfg, tcfd j{kk cU?ku vkSj HkS;k nkSt tSls R;ksgkjksa ds nkSjku iapd ugha ns[kk tkrk gS vFkkZrव्रतत्यौहार आदि में पंचक का कोई महत्व नहीं होता। ज्योतिष के प्रसिद्ध शास्त्र "राजमार्त्तण्ड"के अनुसार ईंधन एकत्र करनेचारपाई बनानेछत बनवानेदक्षिण दिशा की यात्रा करने में घनिष्टा नक्षत्र में इनमें से कोई काम करने पर अग्नि का भय रहता है. शतभिषा नक्षत्र में कलहपूर्वा भाद्रपद में रोगउतरा भाद्रपद में जुर्मानारेवती में धन हानि होती है.
यदि किसी कारणवश या आपातकाल में पंचक के दौरान निषेध कार्य को करना पड़े तो अलग-अलग कार्यों के लिए नक्षत्र स्थिति के अनुसार पंचक दोष निवारण के उपाय बताए गए हैं। यदि पंचक काल में कोई कार्य करना जरुरी हो तो धनिष्ठा नक्षत्र के अंत कीशतभिषा नक्षत्र के मध्य कीपूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के आदि कीउत्तरा भाद्रपद नक्षत्र की अंत की पांच घडी का समय छोड़कर शेष समय शुभ होता है। इससे पंचक दोष समाप्त हो जाते हैं और कार्य किये जा सकते हैं। किंतु रेवती नक्षत्र का पूरा समय अशुभ माना जाता हैइसलिए इस नक्षत्र में कार्य संपादन का विचार भी नहीं करना चाहिए। दि किसी की पंचक में मृत्यु हो जाये तो पंचकशांती करानी चाहिए  ऋषि गर्ग ने कहा है कि शुभ या अशुभ जो भी कार्य पंचकों में किया जाता है. वह पांच गुणा करना पडता है. इसलिये अगर किसी व्यक्ति की मृ्त्यु पंचक अवधि में हो जाती है. तो शव के साथ चार या पांच अन्य पुतले आटे या कुशा से बनाकर अर्थी पर रख दिये जाते है. इन पांचों का भी शव की भांति पूर्ण विधि-विधान से अन्तिम संस्कार किया जाता है.

वर्ष 2011 esa पंचक तिथियाँ

पंचक का प्रारम्भ काल
पंचक का समाप्ति काल
मास
समय
मास
समय
7जनवरी
20:33 से
12 जनवरी
21:14 तक
फरवरी
04:00 से
फरवरी
04:51 तक
मार्च
10:19 से
मार्च
11:19 तक
30 मार्च
16:07 से
अप्रैल
17:15 तक
26 अप्रैल
22:30 से
मई
23:30 तक
24 मई
06:07 से
29 मई
06:34 तक
20 जून
14:39 से
25 जून
14:23 तक
17 जुलाई
23:12 से
22 जुलाई
22:24 तक
14 अगस्त
06:52 से
19 अगस्त
05:59 तक
10 सितम्बर
13:18 से
15 सितम्बर
12:47 तक
अक्तूबर
19:00 से
12 अक्तूबर
18:59 तक
नवम्बर
25:10 से
नवम्बर
25:09 तक
दिसम्बर
08:52 से
दिसम्बर
07:58 तक
28 दिसम्बर
18:07 से
जनवरी(2012)
15:39 तक


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