Thursday, 3 October 2013

शनि की ढईया और साढ़े साती (Saturn Dhaiya and Sadesati)



शनि की ढईया और साढ़े साती (Saturn Dhaiya and Sadesati)

साढ़े-साती यानी शनि का आपकी राशि के आस-पास भ्रमण | शनि जब कुंडली में चंद्रमा की स्थिति से 12th, 1st और 2nd स्थान पर होते हैं तब शनि की साढ़े-साती होती है, शनि जब कुंडली में चंद्रमा की स्थिति से 4th और 8th स्थान पर होते हैं तब शनि की ढैय्या प्रारम्भ होती है।

युगों-युगों से मनुष्य को सत्कर्म या दुष्कर्म करने पर मिलने वाले प्रतिसाद या दंड का बोध कराने वाले शनिदेव से सभी परिचित हैं एक ग्रह के रूप में शनिदेव की गति का यदि आंकलन करें तो पता लगता है कि अत्यंत मन्द गति से विचरण करने वाले शनिदेव सूर्य के चारों ओर 30 वर्षों में एक चक्कर लगाते हैं स्पष्ट है कि किसी मनुष्य के पूर्ण जीवन काल में औसतन दो या तीन बार साढे-साती आ सकती है और यही काल शनिदेव द्वारा कर्मों के आधार पर मनुष्य को परिणाम देने का समय होता है

हमारी जन्मकुंडली में स्थित सभी 9 ग्रह 12 राशियों में विचरण करते रहते हैं। एक ग्रह एक राशि में निश्चित समय के लिए ही रुकता है। चूंकि शनि ग्रह सबसे मन्दगामी ग्रह है यह एक राशि में ढाई वर्ष रुकता है। सभी 12 राशियों के भ्रमण में शनि को लगभग 30 वर्ष का समय लगता है। शनि अपनी गोचर साढे-साती के दौरान हर पिछले अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब लेता है।  वैदिक शास्त्रों के अनुसार सर्वाधिक महत्वपूर्ण  न्यायधीश का पद शनिदेव को प्राप्त है। अत: शनिदेव ही सबसे शक्तिशाली और हमारे भाग्य विधाता हैं। हमारे अच्छे-बुरे कर्मों का फल शनिदेव ही प्रदान करते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनिदेव साढ़े-साती और ढैय्या के दौरान व्यक्ति को उसके कर्मों का फल प्रदान करते हैं। हर 30 साल में प्रत्येक जातक को शनिदेव के आगे हाजिर होना पड़ता है। शनिदेव ऐश्वर्य के दाता हैं और गरीब वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।

शनि का शाब्दिक अर्थ है-- ‘शनै: शनै: चरति इति शनैश्चर:’ अर्थात धीमी गति से चलने के कारण यह शनैश्चर कहलाए। नवग्रहों में शनि की सबसे मंद गति है। तुला राशि में शनि उच्च के होते है और मेष राशि में नीच के होते है । चंद्र के गोचर से शनि जब 12वीं राशि में आते है तब साढ़े-साती शुरू होती है। जिस राशि में शनि होता है उससे आगे राशि वाले जातकों को साढ़े-साती का प्रथम  चरण चल रहा होता है जबकि पिछली राशि वाले जातकों को साढ़े-साती का अखिरी चरण चल रहा होता है।

शनि की ढईया और साढ़े-साती का नाम सुनकर बड़े-बड़े महारथियों के चेहरे की रंगत उड़ जाती है। विद्वान ज्योतिषशास्त्रियों की मानें तो शनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुत से लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभ-सम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है जबकि कुछ लोगों को शनि की इस दशा के दौरान काफी परेशानी और कष्टों का सामना करना  पड़ता है। इस तरह देखा जाय तो शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ फल भी प्रदान करते हैं। शनि का प्रभाव सभी व्यक्ति पर उनकी  जन्म-कुण्डली/राशि-कुण्डली में विद्यमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता है। साढ़े-साती के प्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि और चन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चन्द्रमा की स्थिति बहुत मायने रखती है। अगर कुण्डली में चन्द्रमा उच्च राशि में होता है तो जातक में अधिक सहन शक्ति आ जाती है और कार्यक्षमता बढ़ जाती है जबकि कमज़ोर व नीच का चन्द्र जातक की सहनशीलता को कम कर देता है व मन काम में नहीं लगता है जिससे जातक की परेशानी और बढ़ जाती है। जन्म-कुण्डली में चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलन करना भी जरूरी होता है। अगर जातक का लग्न वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर अथवा कुम्भ है तो शनि नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि जातक को उनसे लाभ व सहयोग मिलता है |
शनि की साढ़ेसाती:  जब शनि किसी राशि में ढाई वर्ष रुकता है तो उस राशि के आगे और पीछे वाली राशि पर भी सीधा प्रभाव डालता है। यानि शनि एक राशि को साढ़े सात वर्ष तक प्रभावित करता है। इस साढ़े सात साल के समय को ही शनि की साढ़े-साती कहा जाता है। उदाहरण कुण्डली में शनि तुला राशि में है । अत: तुला राशि के पहले वाली राशि कन्या और बाद वाली राशि वृश्चिक पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव है।

शनि की ढैय्या: शनि की ढैय्या का अर्थ है कि जिस राशि में शनि रहता है उस राशि से ऊपर की ओर वाली चौथी राशि पर और नीचे की ओर वाली छठी राशि पर शनि की ढैय्या रहती है। उदाहरण  कुण्डली में मीन राशि है । जोकि तुला राशि से नीचे की ओर छठी राशि है । अत: मीन राशि पर शनि की ढैय्या का प्रभाव है।
शनि की साढ़े-साती सभी राशियों को एक समान फल नहीं देती है। जिनका जातकों का जन्मकालीन शनि योगकारक होता है उनके लिए साढ़े-साती का दौर एक बेहतरीन और सुनहरा मैदान तैयार करता है। उनमें रात-दिन परिश्रम करने की शक्ति और युक्ति का संचार होता है। जिन जातकों का जन्मकालीन शनि खराब है, उनके लिए साढ़ेसाती बहुत ही खराब होती है। शुद्ध और पवित्र आचरण से जीवनयापन करने वाले चरित्रवान लोगों पर भी शनि का कुछ दुष्प्रभाव जरूर होता है, लेकिन समयानुसार उन्हें अपने कष्ट से मुक्ति भी मिल जाती है। इस तरह शनि की गोचर स्थिति कम या ज्यादा सभी को ही थोड़ा-थोड़ा सुख और दुख का अनुभव देने वाली होती है।

शनि का प्रभाव कैसे होता है?
शनि के चार पाये -- पाद लौह, ताम्र, स्वर्ण, और रजत होते हैं। गोचर में जिन राशियों पर शनि सोना या स्वर्ण और लोहपाद से चल रहा है, उनके लिए शनि का प्रभाव अच्छा नहीं माना जाता। जिन पर शनि चांदी या तांबे के पाये से चल रहा है, उनको फल कुछ अच्छे और कुछ बुरे रूप से मिलते हैं जोकि जन्म-कुण्डली में शनि की स्थिति पर निर्भर करती है।

शनि की साढ़ेसाती के 3 चरण:
प्रथम चरण में जातक का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है, इसे मतिभ्रम कहा जा सकता है तथा वह अपने उद्देश्य से भटक कर चंचल वृति धारण कर लेता है। जातक की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है. निद्रा में कमी, मानसिक चिन्ताओं में वृ्द्धि होना सामान्य बात हो जाती हैमेहनत के अनुसार लाभ नहीं मिल पाते है। पहले चरण की अवधि लगभग ढाई वर्ष तक होती है। प्रथम चरण वृ्षभ, सिंह, धनु राशियों के लिये कष्टकारी होता है
द्वितीय चरण में मानसिक कष्ट के साथ-साथ शारीरिक कष्ट भी जातक घेरने लगते हैं। उसके सारे प्रयास असफल होते जाते हैं। जातक अपने को तन-मन-धन से निरीह और दयनीय अवस्था में महसूस करता है। पारिवारिक तथा व्यवसायिक जीवन में अनेक उतार-चढाव आते है संबन्धियों से भी कष्ट होते है, घर-परिवार से दूर रहना पड सकता है, रोगों में वृ्द्धि हो सकती है   इस दौरान अपने और परायों की परख भी हो जाती है। अगर जातक ने अच्छे कर्म किए हों, तो इस दौरान उसके कष्ट भी धीरे-धीरे कम होने लगते हैं। अगर दूषित कर्म किए हैं तो साढ़ेसाती का दूसरा चरण घोर कष्टप्रद होता है। इसकी अवधि भी ढाई साल होती है। इस अवधि में मेष, कर्क, तुला,वृश्चिक और मकर राशि के जातकों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिये
तीसरे चरण में जातक के भौतिक सुखों में कमी होती है आय की तुलना में व्यय अधिक होते है स्वास्थय संबन्धी परेशानियां आती है वाद-विवाद के योग बनते है जातक पूर्ण रूप से अपने संतुलन को खो चुका होता है तथा उसमें क्रोध की मात्रा बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप हर कार्य का उल्टा ही परिणाम सामने आता है तथा उसके शत्रुओं की वृद्धि होती जाती है। मतिभ्रम और गलत निर्णय लेने से फायदे के काम भी हानिप्रद हो जाते हैं। स्वजनों और परिजनों से विरोध बढ़ता है। छवि खराब होने लगती है। अतः जिन राशियों पर साढ़ेसाती तथा ढैय्या का प्रभाव है, उनके शनि की शन्ति के उपचार करने पर अशुभ फलों की कमी होने लगती है और धीरे-धीरे वे संकट से निकलने के रास्ते प्राप्त कर सकते हैं। इस अवधि में मिथुन, कर्क, तुला, कुम्भ, कन्या और मीन राशि के जातकों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिये

शनि शान्ति के उपाय और उपचार: mik;ksa ds nokjk ‘kfu ds nq”izHkko dks de fd;k tk ldrk gS A
1. शनि का रत्न धारण करें।
2. शनि की शांति के लिए कुछ वैदिक बीज मंत्र भी हैं, जो कि नियमित रूप से संध्या पूजा में शामिल किए जा सकते हैं।हैं।


(Many other remedies are there which can be followed after consulting the Astrologer only.)



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Om Tat Sat

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