चिकित्सा विज्ञान के अनुसार जब यूरिक एसिड का उत्सर्जन समुचित प्रकार से नहीं हो पाता है, पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक हो तब गठिया रोग होता है । आयुर्वेद के अनुसार जोड़ों में वात का संतुलन बिगड़ने पर गठिया रोग होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मकर राशि जोड़ों का कारक और शनि वात का कारक ग्रह है। कुण्डली में शनि की स्थिति अनुकूल नहीं होने पर, मकर राशि पर दुष्प्रभाव हो तो जातक इस रोग का सामना करता है।
शनि के अलावा बुध और शुक्र भी वात का कारक ग्रह हैं और इस रोग को प्रभावित करते हैं। जब कुण्डली में शनि अशुभ भावों का स्वामी होता है और बुध एवं शुक्र को देखता है तो गठिया रोग का दर्द सहना पड़ता है। बुध स्नायु तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है। यह कफ और वायु प्रकृति के रोग का कारक है। मोटापा भी गठिया रोग में महत्वपूर्ण है। बृहस्पति मोटापा का कारक है। बृहस्पति और शनि एक दुसरे से समसप्तक हो इस स्थिति में भी गठिया रोग हो सकता है। वृष, मिथुन एवं तुला राशि के व्यक्तियों में इस रोग की संभावना अधिक रहती है। यदि शनि चन्द्रमा को देखता है तब भी गठिया रोग होता है।